दहेज एक बड़ी समस्या

 दहेज़ की समस्या पर थोड़ी देर ठंडे दिमाग से सोचिए। 


शादी को जिस तरह दो परिवारों के बीच का मामला बनाया गया उसमें शादी एक 'अच्छी' लड़की और 'कमाऊ' लड़के के बीच का मामला है। अब मान लिया जाता है कि लड़कियाँ तो सब अच्छी होती हैं तो चयन में सुंदरता देखी जाती है (आजकल पढ़ाई वगैरह भी ताकि घर अच्छे से चल सके) और अच्छा (पढ़िए पैसे वाला) परिवार। लड़के सब कमाऊ नहीं होते। होते भी हैं तो अलग-अलग श्रेणी के। अब उसमें भी अपनी जाति/धर्म वगैरह का चाहिए!


अब अधिक रसूख और कमाई वाला, यानी बड़ा सरकारी अफ़सर वगैरह चाहिए तो क़ीमत तो चुकानी पड़ेगी! यह बीमारी नीचे तक जाती है। जैसा ओहदा वैसी क़ीमत। यहाँ तक कि धोखेबाज़ी का खेल भी चलता है। 


फिर इलाज़ क्या है? 


इतना तो तय है कि जब तक माँ-बाप शादी तय करते रहेंगे तब तक यह लेन-देन  चलता रहेगा। प्लीज अपने उदाहरण न दीजिएगा। दो-चार आदर्शवादी हर जगह हैं। 


दहेज़ के खात्मे का असल तरीक़ा एक ही है। लड़कियों को पढ़ने-लिखने कैरियर बनाने और फिर अपना साथी चुनने की आज़ादी और जायदाद मे हक़। 


लेकिन उससे तो आपकी संस्कृति परंपरा दीन ईमान खतरे में या जाएगा। 

___

इसलिए जब तक इनका खतरा बना है, आशा और आएशा दोनों मरती रहेंगी या फिर घुट-घुट के जीती रहेंगी।

Ashok Kumar Pandey



Comments